

अधिक मास पुरुषोत्तम मास धर्म ग्रंथों के अनुसार तीन वर्ष में एक बार पुरुषोत्तम मास आता है। इसे अधिक मास भी कहते है। पहले हम ये जान लेते है की पुरुषोत्तम मास है क्या ? ज्योतिष् शास्त्र के अनुसार जिस मास में अमावस्या से अमावस्या के बीच में कोई संक्रांति न पड़े उसे अधिक मास कहते है। संक्रांति का अर्थ सूर्य का राशि परिवर्तन से है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को ही संक्रांति कहते है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार एक सौर वर्ष 365 दिन 6 घंटे 11 मिनट का होता है तथा एक चंद्र वर्ष 354 दिन 9 घंटे का माना जाता है। सौर वर्ष और चंद्र वर्ष की गणना को बराबर करने के लिए अधिक मास की उत्पत्ति हुई। पुरुषोत्तम मास में पूजा पाठ का विशेष महत्व है। जो जातक पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से उपवास, पूजा पाठ दान कर्म करता है। उसे पुण्य की प्राप्ति एवं कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस वर्ष 16 मई से 13 जून तक सूर्य संक्रांति न होने के कारण ज्येष्ठ अधिक मास बनता है। शास्त्रों के अनुसार मास प्रारंभ के समय भगवान विष्णु की आराधना लाल चंदन, लाल फूल और अक्षत सहित पूजन करना चाहिए। भगवान को घी, गुड और गेहूं के आटे से मीठे पूवे बना कर कास्य पात्र में फल फूल दक्षिणा वस्त्र के साथ भोग लगा कर दान करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार अधिक मास में शुभ कार्यों को वर्जित कहा गया है। जैसे नामकरण, गृह प्रवेश, जनेऊ संस्कार, मुंडन, विवाह, नव वधू प्रवेश, गाड़ी खरीदना, नीव पूजन आदि। इस माह में तामसिक भोजन से भी बचना चाहिए जैसे मास मदिरा, लहसुन प्याज़ आदि। इस मास में किए जाने वाले कार्य है वार्षिक श्राद्ध, मृत्यु तुल्य कष्ट से मुक्ति पाने के लिए रुद्राभिषेक, गर्भधान संस्कार, दान जप, पुंसवन संस्कार व सीमांत संस्कार हो सकता है। इस मास में पुरुषोत्तम मास में भूमि पर शयन करना चाहिए, सादा और सात्विक भोजन करना चाहिएं। भागवत पुराण के 6 स्कंध में 15 अध्याय है। पहले पांच अध्याय में हिरण्यकश्यप की कथा आती है। उसने एक बार ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर के उनसे ऐसा वरदान मांगा की आप की बनाई गई सृष्टि के किसी महीने में न मरू, ऊपर मरू न नीचे मरू, बाहर मरू न अंदर मरु। ब्रह्मा जी ने खुश हो कर तथास्तु कह दिया। उसी हिरण्यकशयप को मारने के लिए एवं भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए, नरसिंह अवतार ले कर इस अधिक मास में ही दुष्ट को संहार कर अधर्म का नाश किया था। एक प्रसंग ऐसा भी मिलता है की एक बार अधिक मास क्षीर सागर में भगवान विष्णु के पास जा कर प्रार्थना की कि भगवान अगर मैं इतना ही बुरा हूं तो मुझे बनाया ही क्यों ? क्योंकि हर नक्षत्र, हर दिन, हर ग्रह का कोई न कोई स्वामी है परंतु मेरा कोई स्वामी न होने के कारण कोई भी इस मास में शुभ कार्य नही करता। तब भगवान ने वरदान दिया की आज से तुम मेरे नाम ए जाने जाओगे अर्थात पुरुषोत्तम के नाम से तथा इस माह मे मेरी भक्ति करने वालों को असंख्य पुण्य की प्राप्ति होगी और भव सागर से मुक्ति पाएगा। "मलमास" , , , हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक तीन वर्ष पर आने वाला अधिक मास !! इस वर्ष मलमास 16 मई से 13 जून तक है । अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से 12 महीने होते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि हिंदुओं की मान्यता के अनुसार प्रत्येक तीन साल में एक साल 13 महीनों का होता है ? आपको यकीन भले न हो, लेकिन यह सच है। चलिए हम आपको बताते हैं इससे जुड़ी सच्चाई। हर तीसरे साल जो तेरहवां महीना आता है, उस महीने को मलमास कहा जाता है। अंग्रेजी में इस माह का जिक्र नहीं है, लेकिन हिंदुओं की मान्यता के अनुसार एक माह मलमास का होता है। पौराणिक भारतीय ग्रंथ वायु पुराण के अनुसार मगध सम्राट बसु द्वारा बिहार के राजगीर में 'वाजपेयी यज्ञ' कराया गया था। उस यज्ञ में राजा बसु के पितामह ब्रह्मा सहित सभी देवी-देवता राजगीर पधारे थे। यज्ञ में पवित्र नदियों और तीर्थों के जल की जरूरत पड़ी थी। कहा जाता है कि ब्रह्मा के आह्वान पर ही अग्निकुंड से विभिन्न तीर्थों का जल प्रकट हुआ था। उस यज्ञ का अग्निकुंड ही आज का ब्रह्मकुंड (राजगीर, बिहार) है। उस यज्ञ में बड़ी संख्या में ऋषि-महर्षि भी आए थे। पुरुषोत्तम मास, सर्वोत्तम मास में यहां अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति की महिमा है। किंवदंती है कि भगवान ब्रह्मा से राजा हिरण्यकश्यपु ने वरदान मांगा था कि रात-दिन, सुबह-शाम और उनके द्वारा बनाए गए बारह मास में से किसी भी मास में उसकी मौत न हो। इस वरदान को देने के बाद जब ब्रह्मा को अपनी भूल का अहसास हुआ, तब वे भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने विचारोपरांत हिरण्यकश्यपु के अंत के लिए तेरहवें महीने का निर्माण किया। धार्मिक मान्यता है कि इस अतिरिक्त एक महीने को मलमास या अधिक मास कहा जाता है। वायु पुराण एवं अग्नि पुराण के अनुसार इस अवधि में सभी देवी- देवता यहां आकर वास करते हैं। इसी अधिक मास में मगध की पौराणिक नगरी राजगीर में प्रत्येक ढाई से तीन साल पर विराट मलमास मेला लगता है। इस माह में लाखों श्रद्धालु पवित्र नदियों प्राची, सरस्वती और वैतरणी के अलावा गर्म जलकुंडों, ब्रह्मकुंड, सप्तधारा, न्यासकुंड, मार्कंडेय कुंड, गंगा-यमुना कुंड, काशीधारा कुंड, अनंतऋषि कुंड, सूर्य-कुंड, राम-लक्ष्मण कुंड, सीता कुंड, गौरी कुंड और नानक कुंड में स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण मंदिर में आराधना करते हैं। वर्ष भर इन कुंडों में निरंतर उष्ण जल गिरता रहता है, , इस जल का श्रोत अज्ञात है। राजगीर में इस अवसर पर भव्य मेला भी लगता है। राजगीर में मलमास के दौरान लाखों श्रद्धालुओं की मौजूदगी में दिखती है गंगा-यमुना संस्कृति की झलक। मोक्ष की कामना और पितरों के उद्धार के लिए जुटते हैं श्रद्धालु। इस माह विष्णु पुराण ज्ञान यज्ञ का आयोजन करके सत्, चित व आनंद की प्राप्ति की जा सकती है। कैसे पहुंचें राजगीर:- सड़क परिवहन द्वारा राजगीर जाने के लिए पटना, गया, दिल्ली से बस सेवा उपलब्ध है। इसमें बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम अपने पटना स्थित कार्यालय से नालंदा एवं राजगीर के लिए टूरिस्ट बस एवं टैक्सी सेवा भी उपलब्ध करवाता है। इसके जरिए आप आसानी से राजगीर पहुंच सकते हैं। वहीं, दूसरी तरफ यहां पर वायु मार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाई- अड्डा पटना है, जो राजगीर से करीब 107 किमी की दूरी पर है। रेल मार्ग के लिए पटना एवं दिल्ली से सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। राजगीर जाने के लिए बख्तियारपुर से अलग रेल लाइन गई है, , जो नालंदा होते हुए राजगीर में समाप्त हो जाती है। मङ्गलं भगवान् विष्णुः मङ्गलं गरूडध्वजः। मङ्गलं पुण्डरीकाक्षः मंगलायतनो हरिः॥ भगवान् विष्णु मंगल हैं, गरुड वाहन वाले मंगल हैं, कमल केसमान नेत्र वाले मंगल हैं, हरि मंगल के भंडार हैं। मंगल अर्थात् जो मंगलमय हैं, शुभ हैं, कल्याणप्रद हैं, जैसे समझ लें। वंदना---- प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं शुभम्। नमो नमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम्।। प्राच्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। गदां कौमोदकीं गृह्य पद्मनाभ नमोस्तु ते।। याम्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। हलमादाय सौनन्दं नमस्ते पुरुषोत्तम।। प्रतीच्यां रक्ष मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। मुसलं शातनं गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम्।। उत्तरस्यां जगन्ननाथ भवन्तं शरणं गत:। खड्गमादाय चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे।। नमस्ते रक्ष रक्षोघ्र ऐशान्यां शरणं गत:। पाञ्चजन्यं महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम्।। प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्रेय्यां यज्ञशूकर। चन्द्रसूर्य समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा।। नैर्ऋत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते नृकेसरिन्। वैजयन्ती सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम्।। वायव्यां रक्ष मां देव हयग्रीव नमोस्तुते। वैनतेयं समरुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन।। मां रक्षस्वाजित सद नमस्तेस्त्वपराजित। विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां तवं रसातले।। अकूपार नमस्तुभ्यं महामीन नमोस्तु ते। करशीर्षाद्यङ्गलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम्।। कृत्वा रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम। एतदुक्तं शङ्काराय वैष्णवं पञ्जरं महत्।। पुरा रक्षार्थमीशान्यां: कात्यायन्या वृषध्वज। नाशयामास सा येन चामरं महिषासुरम्।। दानव रक्तबीजं च अन्यांश्च सुरकण्टकान्। एतज्जपन्नरो भक्तया शत्रून् विजयते सदा।। समस्त चराचर प्राणियों का कल्याण करो प्रभु, , , , अधर्म का नाश हो, , धर्म की स्थापना हो, , , , ~~ॐ नमो नारायणाय ॐ नमो भगवते वासुदेवाय, जयति पुण्य सनातन संस्कृति, , जयति पुण्य भूमि भारत, , , सदा सर्वदा सुमंगल, , हर हर महादेव, , ॐ विष्णवे नम: जय माँ ईश्वरी adhik maas ! astrologer in indore ! purshotam maas ! maharaj kapil ! maa ishwari ! 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