
जप-साधना के 33 अनिवार्य नियम

🕉️ जप-साधना के 33 अनिवार्य नियम सिद्धि पाने का शास्त्रीय मार्ग – महाराज कपिल जी (इंदौर) जप-साधना केवल मंत्र बोलने का अभ्यास नहीं है। यह शरीर की शुद्धि, मन की स्थिरता, आहार-विहार और गुरु-कृपा का संयुक्त विज्ञान है। शास्त्र स्पष्ट कहते हैं — “नियमविहीन साधना निष्फल होती है।” इसी कारण महाराज कपिल जी, इंदौर के अनुभवी एवं सिद्ध पंडित, जप-साधना के वे नियम बताते हैं जिनका पालन करने से साधक को शीघ्र फल, मानसिक शांति और ईष्ट-कृपा प्राप्त होती है। 🔱 जप-साधना के प्रमुख नियम (सरल एवं व्यवहारिक व्याख्या) 1️⃣ शरीर व वस्त्र की शुद्धि साधना से पहले स्नान आवश्यक है। यदि बीमारी या अत्यधिक ठंड के कारण स्नान संभव न हो, तो मुख-हाथ-पैर धोकर या गीले कपड़े से शरीर पोंछना पर्याप्त माना गया है। ❌ दिनभर पहने हुए बासी कपड़ों में साधना नहीं करनी चाहिए। 2️⃣ वस्त्र और आसन साधना में कम से कम वस्त्र रखें। सर्दी में कंबल का प्रयोग किया जा सकता है। ✔️ कुशासन, ऊनी, रेशमी, मृगचर्म या व्याघ्रचर्म साधना के लिए श्रेष्ठ माने गए हैं। ✔️ पालथी मारकर सीधी अवस्था में बैठना उत्तम है। 3️⃣ साधना-स्थान का चयन साधना-स्थल होना चाहिए: शांत सात्विक स्वच्छ सुगंधित भीड़-भाड़ से दूर मंदिर, नदी-तट, बगीचा या एकांत स्थान श्रेष्ठ हैं। यदि संभव न हो, तो घर का शांत कमरा भी उपयुक्त है। 4️⃣ मेरुदंड और प्राण प्रवाह जप करते समय मेरुदंड सीधा रखें, ताकि 👉 सुषुम्ना नाड़ी में प्राण का प्रवाह सहज रूप से हो सके और ध्यान गहराता जाए। 5️⃣ माला, समय और दिशा तुलसी, कमला, रक्षा या सर्पहृंगी माला साधना अनुसार प्रयोग करें प्रातःकाल साधना सर्वोत्तम मानी गई है प्रातः पूर्वमुख, सायंकाल पश्चिममुख बैठें साधना सदैव एक ही स्थान और निश्चित समय पर करें कम से कम 11 माला का नियमित जाप करें 6️⃣ जप की विधि होंठ हिलें, कंठ से हल्की ध्वनि रहे पास बैठे व्यक्ति को सुनाई न दे झूमते, खड़े या शरीर हिलाते हुए जाप न करें सुमेरु का उल्लंघन न करें 7️⃣ आहार-विहार और मानसिक शुद्धि सात्विक भोजन करें तामसिक और रजोगुणी आहार से बचें जाप के बीच भोजन, लौंग-इलायची आदि लेना निषिद्ध है छल, कपट, निंदा, बेईमानी से दूर रहें 8️⃣ गुरु और ईष्ट पर श्रद्धा गुरु के प्रति पूर्ण आदर और भक्ति रखें ईष्टदेव पर अटूट विश्वास रखें साधना के अनुभवों का प्रदर्शन न करें विघ्न आने पर निराश न हों 9️⃣ विशेष परिस्थितियाँ यात्रा या रोग में मानसिक जाप स्वीकार्य है सूतक काल में विधिवत साधना वर्जित है, केवल मानसिक जाप करें साधना के बीच उठना पड़े तो शुद्धि कर एक माला प्रायश्चित्त अवश्य करें
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